CG Lok Sabha Election Analysis: चुनाव जीतने के लिए इन दिग्गजों ने लगा दी जान, किसका होगा बेड़ा पार?

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CG Lok Sabha Election Analysis: छत्तीसगढ़ की सभी 11 सीटों पर चुनाव खत्म हो चुके हैं. मंगलवार को 7 सीटों पर हुए अंतिम चरण के चुनाव में 71 फीसदी मतदान हुआ. ये आंकड़े अभी और बढ़ेंगे. इस चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टी के दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है. अपनी साख बचाने के लिए इन प्रत्याशियों ने खूब पसीना बहाया है, जिसमें पूर्व सीएम भूपेश बघेल का नाम भी शामिल है. लेकिन किसकी मेहनत रंग लाएगी ये तो 4 जून को रिजल्ट आने पर पता चलेगा. ऐसे में इस रिपोर्ट में समझिए कि चुनाव में अपनी साख बचाने के लिए कौन-कौन से प्रत्याशियों ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी.

भूपेश बघेल- पूर्व मुख्यमंत्री तीसरी बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं. इसके पहले वो रायपुर और दुर्ग लोकसभा सीट से चुनाव लड़ चुके है, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा था.अब राजनांदगांव सीट से वो मैदान पर हैं. बीजेपी प्रत्याशी और राजनांदगांव से वर्तमान सांसद संतोष पांडेय को टक्कर देने के लिए बघेल ने खूब मेहनत की है. राजनांदगाव पूर्व सीएम रमन सिंह का गढ़ है, ऐसे में बघेल के सामने चुनौती डबल थी. इसके अलावा भूपेश को टिकट मिलने के बाद स्थानीय नेताओं की नाराजगी भी सामने आई थी.लोगों ने उन्हें बाहरी प्रत्याशी बता दिया. भाजपा बार-बार यही सवाल करती रही कि अपना निर्वाचन क्षेत्र दुर्ग छोड़कर बघेल राजनांदगांव क्यों आए.

हालांकि भूपेश बघेल ने चुनावी अभियान में कोई कसर नहीं छोड़ी और वो राजनांदगांव के छोटे से छोटे गांव तक प्रचार करने पहुंचे.उन्होंने राजनांदगांववासियों से चुनाव जीतने के बाद क्षेत्र के विकास के लिए अपना प्लान भी बताया. संतोष पांडेय को लापता सांसद कहकर उन्होंने बीजेपी प्रत्याशी को घेरने में भी कोई कमी नहीं छोड़ी.सोशल मीडिया से लेकर ग्राउंड तक बघेल एक्टिव रहे.चुनाव के दौरान उन्होंने इवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने तक का आइडिया कांग्रेस कार्यकर्ताओं को दे डाला था, जिसके बाद भारी बवाल भी हुआ था.

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संतोष पांडेय- बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में बस 2 मौजूदा सांसद को टिकट दिया था, उनमें संतोष पांडेय भी थे. मौजूदा सांसद होने के साथ-साथ पांडेय के सामने चुनौती डबल हो गई.अपनी सीट बचाने की चुनौती तो है ही साथ ही कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व सीएम भूपेश बघेल से उनका मुकाबला है,जो बिल्कुल भी आसान नहीं है.निष्क्रिय सांसद कहकर पांडेय को कांग्रेस घेरती रही. लेकिन पांडेय को जीताने के लिए बीजेपी के आलाकमान ने पूरी ताकत झोंक दी.चाहे वो अमित शाह हों या यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ सभी ने संतोष के पक्ष में जमकर प्रचार किया.

बघेल को मात देने के लिए पांडेय ने कोई कमी नहीं छोड़ी. गांव-गांव जाकर उन्होंने अपने पक्ष में माहौल बनाने की भरपूर कोशिश की.एक मौका ऐसा भी आया जब चुनाव प्रचार के दौरान भूपेश और संतोष आपस में टकरा गए. कई मौकों पर पांडेय बघेल को खुली चुनौती देते हुए भी नजर आए. चुनाव के दौरान पांडेय का अग्रेसिव मोड नजर आया और वो एक से एक बयानबाजी भी देते हुए नजर आए.

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कवासी लखमा- अपने मजेदार अंदाज के लिए जाने वाले  कवासी लखमा बस्तर लोकसभा सीट से कांग्रेस के प्रत्याशी हैं.ये सीट वर्तमान में कांग्रेस के पास है,ऐसे में पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती थी. अपने बेटे के लिए टिकट मांग रहे लखमा को पार्टी ने खुद मैदान पर उतार दिया तो वो भी फूल एक्शन मोड में आ गए. गांव-गांव जाकर वो सभा करते नजर आए और ऐसा-ऐसा बयान दे डाला कि 15 दिनों के अंदर उनके खिलाफ 3 FIR दर्ज हो गई.पीएम मोदी को लेकर दिया एक उनका बयान काफी सुर्खियों में रहा, जिसमें उन्होंने गोंडी भाषा में कहा था- लखमा जीतेगा, मोदी मरेगा. इसके बाद काफी बवाल हुआ.

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चुनाव प्रचार के दौरान लखमा मुर्गा लड़ाई करवाते हुए भी नजर आए.उनके ऊपर मतदाताओं को पैसा बांटने का आरोप भी लगा.टिकट वितरण से लेकर चुनाव होते तक कवासी लखमा हर दिन लाइमलाइट में रहे. उन्होंने वोटर्स को रिझाने में कोई कमी नहीं छोड़ी.

देवेंद्र यादव- भिलाई नगर से विधायक देवेंद्र यादव बिलासपुर लोकसभा सीट से मैदान पर हैं. 34 साल के देवेंद्र यादव का दुर्ग-भिलाई में अच्छा जनाधार है लेकिन  बिलासपुर में उन्होंने अपने पक्ष में माहौल लाने के लिए बहुत मेहनत की. जमीनी स्तर से लेकर सोशल मीडिया तक वो काफी एक्टिव रहे.पोस्टर-बैनर को लेकर वो पुलिस प्रशासन से भी भिड़ गए. चुनाव से ठीक पहले उन्होंने पुलिस को ये तक कह डाला कि मुझे कानून मत सिखाओ और केस कर दो. इसके अलावा दो बार वो जिस होटल में ठहरे थे, वहां निर्वाचन आयोग की उड़नदस्ता टीम ने छापा मारा. लेकिन टीम को खाली हाथ ही लौटना पड़ा, इसके बाद यादव ने भाजपा को डरपोक बताया और कह दिया कि चुनाव तक मुझे जेल के अंदर ही रख लो.

जातीय समीकरण के आधार पर भी देवेंद्र के सामने चुनौती ज्यादा है. बिलासपुर लोकसभा क्षेत्र साहू बाहुल्य इलाका हैं और बीजेपी के प्रत्याशी तोखन राम भी इसी समुदाय से आते हैं. ऐसे में साहू वोटर्स को साधना देवेंद्र के सामने ज्यादा चुनौती रही. इसके अलावा बिलासपुर में कांग्रेस में भारी अंतर्कलह भी देखी गई. इसका खामियाजा भी शायद देवेंद्र यादव को उठाना पड़ सकता है.

सरोज पांडेय- पूर्व राज्यसभा सांसद सरोज पांडेय कोरबा लोकसभा सीट से किस्मत आजमा रही है. शुरू से ही चर्चा था कि बीजेपी उन्हें इस सीट से टिकट दे सकती है. कोरबा सीट में महंत परिवार का प्रभाव है. 2019 में मोदी लहर के बावजूद कोरबा सीट कांग्रेस के पास चली गई थी और ज्योत्सना महंत यहां से सांसद बनीं थीं. ऐसे में इस बार बीजेपी कोरबा सीट किसी भी हालत में जीतना चाहती है.सरोज को भी बाहरी प्रत्याशी बताकर कांग्रेस ने भरपूर घेरने की कोशिश की. कोरबा से सरोज का कुछ नाता नहीं रहा है, इसलिए जनता ने भी बीजेपी प्रत्याशी पर कई सवाल उठाए. हालांकि पांडेय अपनी ओर से लगी रहीं और उनके पक्ष में प्रचार करने के लिए कई बड़े नेता भी पहुंचे. कांग्रेस प्रत्याशी ज्योत्सना महंत को गूंगी और लापता सांसद बताकर उन्होंने भी खूब घेरा.

इन सभी दिग्गजों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है.सभी ने मेहनत तो बहुत की,पैसा-पसीना दोनों बहाया. लेकिन ये तो 4 जून को ही पता चल पाएगा कि किसकी मेहनत रंग लाती है. 

निधि भारद्वाज की रिपोर्ट

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