पाठ जात्रा के साथ शुरू हुआ बस्तर दशहरा, इस बार 107 दिनों का होगा यह ऐतिहासिक पर्व

धर्मेन्द्र महापात्र

17 Jul 2023 (अपडेटेड: Jul 17 2023 1:45 PM)

विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा सोमवार को हरियाली अमावस्या पर पाठ जात्रा रस्म के साथ विधिवत प्रारंभ हो गया.इस मौके पर मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने…

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विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा सोमवार को हरियाली अमावस्या पर पाठ जात्रा रस्म के साथ विधिवत प्रारंभ हो गया.इस मौके पर मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने बिलोरी जंगल से लाए गए साल के पेड़ लठ्ठे की पूजा की गई. इसी लकड़ी से रथ का पुर्जा तैयार किया जाएगा, जिसमें मां दंतेश्वरी विराजित होंगी. वहीं ऐतिहासिक दशहरा इस वर्ष 107 दिनों का होगा हालांकि यह पहली बार नही हो रहा है जब 75 दिनों तक मनाया जाने वाला दशहरा 100 से ज्यादा दिनों तक मनाया जा रहा है.इससे पहले भी 103,104 दिनों का पर्व मनाया जा चुका है.

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पाठ जात्रा के मौके पर बस्तर दशहरा समिति के सदस्य मांझी, चालकी, टेंपल कमेटी के पदाधिकारी और आम नागरिक मौजूद थे. खास बात यह कि इस उत्सव का संबंध रावण दहन से बिल्कुल भी नहीं है. इसमें आदिवासियों की आराध्य देवी मां दंतेश्वरी की पूजा होती है.

रथ संचलन परंपरा वाले बस्तर के इस अनूठे दशहरे का शुभारंभ वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव के शासनकाल में हुआ था.उन दिनों चक्रकोट की राजधानी बड़े डोंगर थी.राजा पुरुषोत्तम देव भगवान जगन्नाथ के परम भक्त थे. राजा पुरुषोत्तम देव को भगवान जगन्नाथ की कृपा से रथपति की उपाधि के साथ 16 पहियों वाला रथ मिला था.तब से बस्तर में दशहरा मनाने की  परम्परा जारी है.

सोमवार को हरेली अमावस्या के दिन दंतेश्वरी मंदिर के सामने बिलोरी जंगल से लाए गए साल के पेड़ के लठ्ठे की पूजा की गई.इस लठ्ठे को स्थानीय लोग टुरलू खोटला कहते हैं. इस काष्ठ की पूजा को पाठ जात्रा कहा जाता है. सुबह 11 बजे मां दंतेश्वरी मंदिर के सामने पाठजात्रा पूजा विधान प्रारंभ हुआ.काष्ठ की धुलाई के पश्चात इसमें पांच कीलें ठोककर पूजा प्रारंभ की गई. उसके बाद बकरा, चार मांगुर मछली, लाल चना और अंडा भेंट किया गया.पाठजात्रा में सात मांगुर मछली की बलि दी जाती है.

बता दें कि इस साल बस्तर दशहरा की रस्में 75 दिन के बजाय 105 दिन में पूर्ण होंगी.हालांकि ग्रहण लगने के चलते यह पर्व 2 दिन बढ़ गई है यानी सारे रस्म 107 दिन में पूरी होगी.

जानकारों की माने तो  इस वर्ष 2023 में एक माह तक का पुरुषोत्तम-अधिकमास पड़ने हैं और 28 अक्टूबर को चंद्रग्रहण होने के कारण दशहरा पर्व की समय सीमा बढ़ गई है.75 दिनों तक चलने वाले बस्तर दशहरा महोत्सव की रस्में इस वर्ष 75 दिन के बजाय 107 दिन में पूरी होंगी.इसका कारण इस वर्ष एक माह अधिकमास है इसलिए बस्तर दशहरा पर्व मनाने की अवधि एक माह बढ़ गई है.  यदि चंद्रग्रहण नही होता तो यह दशहरा पर्व 105 दिनों का होता. तीन महीने से अधिक समय तक मनाए जाने वाले इस उत्सव की शुरुआत 17 जुलाई को पाट जात्रा पूजा विधान के साथ होगा.

17 जुलाई को शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा यह दशहरा

बस्तर दशहरा पर्व 17 जुलाई को शुरू होकर 31 अक्टूबर तक चलेगा. हिंदू पंचाग के अनुसार बस्तर दशहरा की शुरूआत 17 जुलाई पाट जात्रा विधान के साथहुई, 27 सितंबर डेरी गड़ाई पूजा विधान, 14 अक्टूबर काछनगादी पूजा विधान, 15 अक्टूबर कलश स्थापना, जोगी बिठाई पूजा विधान, 21 अक्टूबर बेल पूजा विधान, रथ परिक्रमा पूजा विधान, 22 अक्टूबर निशा जात्रा पूजा विधान, महाअष्टमी पूजा विधान, 23 अक्टूबर कुंवारी पूजा विधान, जोगी उठाई और मावली परघाव पूजा विधान, 24 अक्टूबर भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान, 25 अक्टूबर बाहर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान, 26 अक्टूबर को काछन जात्रा पूजा विधान, 27 अक्टूबर को कुटुंब जात्रा पूजा विधान, एवं 31 अक्टूबर को माता की विदाई पूजा विधान के साथ आगामी वर्ष के लिए बस्तर दशहरा का परायण होगा.

क्या है इतिहास?

बस्तर के आदिवासियों की आराधना देवी मां दंतेश्वरी के दर्शन करने के लिए हर साल देश-विदेश से भक्त और पर्यटक पहुंचते हैं. वर्ष 1408 में बस्तर के काकतीय शासक पुरुषोत्तम देव को जगन्नाथपुरी में रथपति की उपाधि दिया गया था, उन्हें 16 पहियों वाला एक विशाल रथ भेंट किया गया था. बस्तर में 616 सालों से दशहरा मनाया जा रहा है. राजा परुषोत्तम देव ने जगन्नाथ पुरी से वरदान में मिले 16 चक्कों के रथ को बांट दिया था. सबसे पहले रथ के चार चक्कों को भगवान जगन्नाथ को समर्पित किया और बाकी के बचे हुए 12 चक्कों को दंतेश्वरी माई को अर्पित कर बस्तर दशहरा और बस्तर गोंचा पर्व मनाने की परंपरा शुरू किया था तब से लेकर अब तक यह परंपरा चली आ रही है.

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