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आदिवासी ‘वीर’ जिनके शव को अंग्रेज़ों ने तोप से उड़ा दिया था... जानें पूरी कहानी  

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तस्वीर: छत्तीसगढ़ संस्कृति विभाग

छत्तीसगढ़ के वीर नारायण सिंह की वीरता से आज भी लोग प्रेरित होते हैं.

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सोनाखान के जमींदार परिवार में जन्मे वीर नारायण सिंह को राज्य का पहला आदिवासी क्रांतिकारी कहा जाता है.

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पिता की मृत्यु के बाद 35 साल की आयु में जमींदार बनने के बावजूद वे बेहद सरल स्वभाव के व्यक्ति थे. लेकिन उनकी वीरता भी अदम्य थी.

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साल 1856 में पड़े भीषण अकाल में जहां लोगों के पास खुद खाने को अनाज नहीं था वहीं अंग्रेज़ों ने गांव लूटकर अनाज अपने गोदामों में भर लिए थे.

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अपनी जनता को भूख से बेहाल देख वीर नारायण ने अंग्रेजों के गोदामों से राशन लूटकर भूखी जनता में बांट दिया.

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वीर नारायण के इस कृत्य पर अंग्रेज़ों ने उन्हें बंदी बना लिया. मगर 1857 में लोगों ने वीर को जेल से छुड़ा लिया.

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नारायण सिंह ने अपनी एक सेना तैयार की और अपनी युद्ध नीति से अंग्रेज़ों के दांत खट्टे कर दिए.

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अंग्रेज़ों के लिए उन्हें पकड़ पाना मुश्किल हो गया था लेकिन वीर नारायण के साथ बगावत कर एक गद्दार उनसे जा मिला.

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अंग्रेजों ने जनता पर अत्याचार करना शुरू किया.  नारायण सिंह ये बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने आत्मसमर्पण कर दिया.

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10 दिसंबर 1857 को रायपुर में अंग्रेज़ों ने उन्हें सार्वजनिक रूप से फांसी की सजा सुनाई

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अंग्रेज़ उनसे इतना चिढ़ते थे कि उनकी मृत्यु के बाद भी उनके शव को तोप से बांध कर उड़ा दिया गया.

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इस जगह को जयस्तंभ चौक कहा जाता है. आज भी इस शहीद वीर की गौरवगाथा को याद कर लोगों की आंखें भर आती हैं.

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