Chhattisgarh Lok Sabha Election: बघेल के गढ़ में 'कका' के करीबी के आने से तगड़ी फाइट!
Chhattisgarh Lok Sabha Election: दुर्ग लोकसभा सीट में विजय बघेल के सामने भले ही कका याने भूपेश बघेल नहीं लड़ रहे है लेकिन राजेंद्र साहू के लड़ने से भी में भूपेश की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई है.
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Chhattisgarh Lok Sabha Election: दुर्ग लोकसभा सीट में विजय बघेल के सामने भले ही कका याने भूपेश बघेल नहीं लड़ रहे है लेकिन राजेंद्र साहू के लड़ने से भी में भूपेश की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई है.
कांग्रेस का गढ़ माने जाने वाले दुर्ग में इस बार राजेंद्र साहू को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया है. वहीं बीजेपी ने सांसद विजय बघेल पर दोबारा भरोसा जताया है, इससे पहले के चुनाव में बीजेपी से इस लोकसभा सीट पर प्रत्याशी में फेरबदल किया था जिसका फायदा भी बीजेपी मिला.
छत्तीसगढ़ की दुर्ग लोकसभा की सीट अकेली ऐसी लोकसभा सीट है, जिसके तहत आने वाली विधानसभा सीटों ने एक नहीं दो-दो मुख्यमंत्री दिए हैं. अविभाजित मध्यप्रदेश में मोतीलाल वोरा दो बार मुख्यमंत्री बने, जबकि भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में 5 साल तक मुख्यमंत्री रहे हैं. दुर्ग लोकसभा के तहत आने वाली पाटन विधानसभा क्षेत्र से वर्तमान में भी भूपेश बघेल विधायक चुने गए. हालांकि पार्टी ने उन्हे राजनांदगांव लोकसभा से चुनावी मैदान में उतारा है. विजय बघेल की बात करें तो वे सरल व मिलनसार स्वभाव के होने के साथ सामाजिक तौर पर भी काफी मजबूत माने जाते हैं. कुर्मी समाज के साथ ही अन्य वर्गों में भी इनकी पकड़ है.
विजय बघेल ने साल 2000 में पहली बार नगर पालिका के अध्यक्ष पद के लिए निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत भी गए. इसके बाद साल 2003 के विधानसभा चुनाव में पाटन सीट से एनसीपी की टिकट पर चुनाव लड़े, लेकिन हार गए. इसके बाद उन्होंने 2004 में बीजेपी की सदस्यता ली. रिश्ते में चाचा यानी भूपेश बघेल के खिलाफ उन्होंने 2008 में बीजेपी की टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा और जीते. इस कार्यकाल में वे राज्य सरकार में संसदीय सचिव भी रहे. इसके बाद साल 2013 के विधानसभा चुनाव में हार मिली. हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने विजय बघेल को मौका नहीं दिया. तब से ही अटकलें लगाई जा रहीं थी कि विजय को बीजेपी लोकसभा चुनावी मैदान में उतारेगी. और हुआ भी कुछ ऐसा, साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने इन्हें मौका दिया जिसमें विजय बघेल प्रदेश में सबसे ज्यादा वोट से चुनाव जीते.
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अब बात करते हैं कांग्रेस प्रत्याशी की तो इस बार कांग्रेस ने साहू ट्रंप खेलते हुए राजेंद्र साहू को चुनावी रण में उतारा है.कांग्रेस शासन काल में ये दुर्ग के जिला सहकारी बैंक के अध्यक्ष रह चुके हैं..राजेंद्र साहू को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का काफी करीबी माना जाता है. कांग्रेस ने युवा चेहरा राजेन्द्र साहू को दुर्ग लोकसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारकर बड़ा दांव खेला है, जिसके कई राजनीतिक मायने भी है. Out कांग्रेस में दुर्ग से लोकसभा चुनाव के लिए दिग्गज नेताओं की फौज के बावजूद राजेंद्र साहू को उतारने के पीछे भी कारण है. राजेंद्र साहू एक ऐसा नाम है, जिनका व्यापक जनाधार है. साहू के राजनीतिक सफर की बात करें तो वर्तमान में राजेंद्र प्रदेश कांग्रेस कमेटी में महामंत्री हैं. राजेंद्र अपने राजनीति के शुरूआती दौर में छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंच के सेनापति रहे. इसके बाद साहू ने कांग्रेस का दामन थामा और जिला स्तर से लेकर प्रदेश स्तर के कई पदों पर रहे. साल 2009 में स्थानीय नेताओं से अनबन के चलते इन्होंने अपना मन बदला और क्षेत्रीय पार्टी स्वाभिमान मंच से दमदारी से महापौर चुनाव लड़कर करीबी मुकाबले में दूसरे स्थान पर रहे. साहू को चुनाव संचालन का भी बड़ा अनुभव है, साल 2018 और 2023 के विधानसभा चुनाव में वे पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के विधानसभा क्षेत्र पाटन के प्रभारी रह चुके है.
यहां साहू-कुर्मी की बहुलता है. दुर्ग संसदीय सीट पर जातीय समीकरण के साथ-साथ नेताओं की आपसी रिश्तेदारी के चलते चुनाव के वक्त यह अनुमान लगाना कठिन होता है, कि कौन अपने दल के उम्मीदवार के साथ है और कौन खिलाफ काम कर रहा है. विजय बघेल का जब प्रतिभा चंद्राकर से मुकाबला हुआ तो रिश्ता मुंह बोले भाई-बहन का सामने आया. ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि दुर्ग लोकसभा सीट में विजय बघेल के सामने भले ही कका याने भूपेश बघेल नहीं लड़ रहे है लेकिन राजेंद्र साहू के लड़ने से भी में भूपेश की प्रतिष्ठा दाव पर लग गई है.
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