कभी बने ‘शनिचर डॉक्टर’ तो कभी ‘चावल वाले बाबा’, जानें रमन सिंह की पूरी कहानी
बात उस डॉक्टर की, जिसे लोग शनिचर डॉक्टर कहते हैं. बात उस डॉक्टर की, जो ‘चाउर वाले बाबा’ के नाम से मशहूर है. बात उस…
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बात उस डॉक्टर की, जिसे लोग शनिचर डॉक्टर कहते हैं. बात उस डॉक्टर की, जो ‘चाउर वाले बाबा’ के नाम से मशहूर है. बात उस डॉक्टर की, जो सीएम की कुर्सी पर बैठा और बना डाला रिकॉर्ड. और उस डॉक्टर का नाम है- डॉ. रमन सिंह….
बात नवंबर 2003 की है. अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के एक मंत्री अपने पर्सनल सेक्रेटरी के साथ कमरे में बैठे थे. तभी तीसरे आदमी की आवाज़ आई. ‘मंत्री जी! छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में ऑस्ट्रेलिया की एक कंपनी का काम करवा दीजिए. सेक्रेटरी कहते हैं- काम हो जाएगा. शख्स नोटों की गड्डियां रख जाता है. मंत्री जी एक गड्डी उठाकर माथे से लगाते हैं. कहते हैं- ‘पैसा खुदा तो नहीं, पर खुदा कसम, खुदा से कम भी नहीं.’ उस कमरे की बात लीक हो गई. एक अखबार ने उस कमरे की कहानी छाप दी. वो भी मंत्री के चेहरे के साथ. मंत्रीजी का नाम था- दिलीप सिंह जूदेव. बातचीत का वीडियो भी जारी कर दिया गया. हालांकि, इस घटना से पहले बीजेपी छत्तीसगढ़ में अपनी जीत को लेकर आश्वस्त थी. और जू देव सीएम पद को लेकर. लेकिन इस स्टिंग के बाद सब चौपट हो गया. अब सवाल उठा- जूदेव के बाद कौन होगा सीएम फेस? तब सामने आया उस डॉक्टर का नाम. जो सालों से अपनी किस्मत लिख रहा था हर हफ्ते के शनिवार को. नाम था- डॉक्टर रमन सिंह.
जहां से पार्षद से बने, वहीं से विधायक चुने गए
रमन सिंह के पिता विघ्नहरण सिंह वकील थे. लेकिन रमन ने डॉक्टरी चुनी. लेकिन MBBS की डिग्री के रास्ते में आड़े आ गई उम्र. जब कोई चारा नहीं बचा तो रमन ने BAMS करके कवर्धा में क्लीनिक खोल लिया. डॉक्टरी के बीच नेतागिरी का चस्का लगा. 1976 में जनसंघ जॉइन किया. जनसंघ युवा मोर्चा के कवर्धा अध्यक्ष हो गए. जनता के बीच पैठ बनाने के लिए हर शनिवार क्लीनिक पर मुफ्त चेकअप कैंप लगाते. रमन की मेहनत और लगन देखकर गरीब आदिवासी जनता ने नया नाम रख दिया- शनिचर डॉक्टर. अब बारी थी इस काम और नाम को भुनाने की. 1983 में डॉक्टर साहब कवर्धा में पार्षद का चुनाव जीते. 1990 के दशक में सुंदरलाल पटवा ने बस्तर से झाबुआ तक जो पदयात्रा निकाली थी, उसमें रमन सिंह सक्रिय रहे रहे, जिसके बाद उन्हें टिकट भी मिल गया. और जिस कवर्धा में पार्षद हुए थे, वहीं विधायक चुने गए.
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दिलीप सिंह जूदेव नहीं तो नया सीएम कौन?
साल 2000. जब मध्यप्रदेश से अलग होकर छत्तीसगढ़ बना तो बीजेपी की तरफ से सीएम पद के मजबूत दावेदार थे- दिलीप सिंह जूदेव. जिन्होंने आदिवासी इलाकों में घूम-घूम कर वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम किया. कथित धर्म परिवर्तन को रोका. लेकिन जूदेव ने नोटों की गड्डी माथे से लगाई, जिसने पांसा ही पलट दिया. बीजेपी के पास चेहरे का संकट पैदा हुआ. चुनाव हुए. बीजेपी 90 में से 50 सीटें जीती. कांग्रेस 37 पर अटक गई. अब सीएम कौन बने. तब नाम आया रमन सिंह का. जो सालभर से छत्तीसगढ़ में मेहनत कर रहे थे. 7 दिसंबर, 2003 को पार्षदी से शुरुआत करने वाले रमन सिंह छत्तीसगढ़ के पहले निर्वाचित सीएम बन गए. लगातार 2008 और 2013 में भी सीम बने. करीब डेढ़ दशक तक सीएम रहने का रिकॉर्ड भी बनाया.
चाउर वाले बाबा से मोबाइल वाले बाबा बने
ऐसे में सवाल उठा कि आखिर ऐसा क्या तिलिस्म है डॉक्टर साहब का, जो टूट ही नहीं रहा. तो जवाब था कि…छत्तीसगढ़ को रमन सिंह ने अपने काम और मिस्टर क्लीन वाली छवि के बल पर जीता. बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम किया. सड़कें, बिजली. फिर रमन सिंह को फली पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम स्कीम. जो 2012 में लागू हुई. इसके तहत 35 रुपए में 35 किलो चावल बांटा. जिसने रमन सिंह को नया नाम दिया- चाउर वाले बाबा….यानी चावल वाले बाबा. हालांकि, 2013 से 2018 का तक का समय रमन सिंह के लिए चुनौतियों वाला था. तमाम घोटाले सामने आए. PDS योजना में घोटाले की बात सामने आई. फरवरी 2015 में आपूर्ति निगम के दफ्तर में इकोनॉमिक ऑफेंस विंग का छापा पड़ा. अलमारियों से करोड़ों बरामद हुए. एक डायरी मिली. जिसमें कथित तौर पर रमन सिंह की पत्नी और उनकी एक रिश्तेदार का नाम था. मामले में 15 लोग जेल भी गए. PDS कांड ठंडा भी नहीं हो पाया था कि 2016 में रमन सिंह के सांसद बेटे अभिषेक सिंह पर गंभीर आरोप लगे. इस बीच कुर्सी बचाने के लिए रमन सिंह चावल वाले बाबा से मोबाइल वाले बाबा बन गए. 55 लाख महिलाओं को स्मार्टफोन बांटने का ऐलान कर दिया. जिनमें सभी सरकारी योजनाओं की जानकारी होगी.
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वो बीमारी, जिसका इलाज करने में नाकामयाब रहे
राजनीतिक करियर के दौरान एक चीज थी. जिसका इलाज कर पाने में डॉक्टर साहब नाकामयाब रहे. और वो था- नक्सलवाद. 2010 के अप्रैल में दंतेवाड़ा में CRPF के एक कैंप को हज़ारों नक्सलियों ने तबाह कर दिया. 76 जवानों की जान गई. नक्सल समस्या की चर्चा देशभर में छिड़ गई. हालांकि रमन सिंह बार-बार दावा करते रहे कि सरकार विकास से नक्सल समस्या को खत्म कर सकती है. लेकिन विकास बड़ी धीमी रफ्तार से उन इलाकों की ओर बढ़ा, जहां नक्सलियों ने एक वक्त अपना राज कायम कर लिया था. फिर रमन सिंह वैसा जादू भी नहीं कर पाए हैं, जैसा आंध्र ने ग्रे हाउंड फोर्स बनाकर किया था.
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