ईडी का दावा, छत्तीसगढ़ ‘शराब घोटाला’ में भ्रष्टाचार से 2161 करोड़ रुपये जमा किए गए

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प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दावा किया है कि छत्तीसगढ़ में 2019 में शुरू हुए कथित ‘शराब घोटाले’ में 2,161 करोड़ रुपये का भ्रष्टाचार हुआ है. ईडी ने साथ ही यह भी दावा किया कि राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह, नेता, उनके सहयोगी और आबकारी विभाग के अधिकारी इस ‘सिंडीकेट’ में शामिल हैं. राज्य में कथित शराब घोटाले से जुड़े धनशोधन मामले में यहां एक विशेष अदालत के समक्ष दाखिल अभियोजन शिकायत में केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि यह 2,161 करोड़ रुपये की राशि राज्य के खजाने में जानी चाहिए थी.

एजेंसी ने इसमें कांग्रेस नेता एवं रायपुर के महापौर एजाज ढेबर के भाई अनवर ढेबर, छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड (सीएसएमसीएल) के प्रबंध निदेशक अरुणपति त्रिपाठी, शराब कारोबारी त्रिलोक सिंह ढिल्लों, होटल कारोबारी नितेश पुरोहित और अरविंद सिंह को आरोपी बनाया है. ईडी के वकील सौरभ पांडेय ने कहा कि ‘अभियोजन शिकायत’ धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के प्रावधानों के तहत 13,000 पृष्ठों के विश्वसनीय दस्तावेजों के साथ अदालत में दायर की गई.

ईडी ने अभियोजन शिकायत में कहा कि जांच से पता चला है कि राज्य के आबकारी शुल्क विभाग में 2019 से 2023 के बीच कई तरीकों से ‘अभूतपूर्व भ्रष्टाचार’ किया गया और इसमें शामिल ‘सिंडिकेट’ द्वारा लगभग 2,161 करोड़ रुपये की रकम भ्रष्टाचार से पैदा की गयी. इसमें कहा गया है कि पूरी राशि और कुछ नहीं बल्कि वह उचित राशि है जिसे राज्य के खजाने में जाना चाहिए था और केंद्र एवं राज्य सरकारों के लिए राजस्व प्राप्त होना चाहिए था.

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उसने कहा कि आबकारी विभाग की मुख्य जिम्मेदारी शराब की आपूर्ति को विनियमित करना, जहरीली शराब की त्रासदियों को रोकने के लिए उपयोगकर्ताओं को गुणवत्तापूर्ण शराब सुनिश्चित करना और राज्य के लिए राजस्व अर्जित करना है. उसने कहा कि हालांकि (हाल में सेवानिवृत्त) भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी अनिल टुटेजा और अनवर ढेबर के नेतृत्व वाले आपराधिक ‘सिंडिकेट’ ने इन उद्देश्यों को उलट दिया. इसमें कहा गया है कि इन लोगों ने शराब नीति में अपने हिसाब से तब्दीली की और अधिकतम व्यक्तिगत लाभ उठाया. इसमें कहा गया है कि इस ‘सिंडिकेट’ में राज्य के वरिष्ठ नौकरशाह, नेता, उनके सहयोगी और आबकारी विभाग के अधिकारी शामिल हैं.

क्या है 2019 का शराब घोटाला जानिए पूरा मामला

एजेंसी ने कहा कि फरवरी 2019 में, भारतीय दूरसंचार सेवा (आईटीएस) के अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी को सीएसएमसीएल (शराब की खरीद और बिक्री के लिए राज्य निकाय) का नेतृत्व करने के लिए ‘सिंडिकेट’ द्वारा चुना गया था. एजेंसी ने कहा गया है कि उसी साल मई में ढेबर के कहने पर उन्हें संगठन का प्रबंध निदेशक बनाया गया. उसने कहा कि त्रिपाठी को सीएसएमसीएल द्वारा खरीदी गई शराब पर एकत्रित रिश्वत कमीशन को अधिक से अधिक बढ़ाने और सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से गैर-शुल्क भुगतान वाली शराब की बिक्री के लिए आवश्यक व्यवस्था करने का काम सौंपा गया था.

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उसने कहा कि साजिश के तहत, सीएसएमसीएल के एमडी केवल पसंदीदा निर्माताओं से शराब खरीदते थे जबकि कमीशन नहीं देने वालों को दरकिनार कर दिया जाता था. उसने कहा कि ईडी को दिए गए बयानों के अनुसार, अनवर ढेबर इस कमीशन को इकट्ठा करता था और इसमें से बड़ा हिस्सा सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के साथ साझा किया जाता था. ईडी ने कहा कि सिंडिकेट ने सीएसएमसीएल द्वारा संचालित दुकानों के माध्यम से बेहिसाब अवैध शराब के निर्माण और बिक्री की साजिश रची. ईडी ने कहा कि साजिश के तहत सिंडिकेट द्वारा डिस्टिलर्स को डुप्लिकेट होलोग्राम प्रदान किए गए थे, डिस्टिलर्स द्वारा डुप्लिकेट बोतलें नकद में खरीदी गई थीं.

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इसमें कहा गया है कि डिस्टिलर्स को (लगभग 560-600 रुपये प्रति मामला) और स्थानीय आबकारी अधिकारियों (लगभग 150 रुपये प्रति मामला) का भुगतान करने के बाद, ढेबर अधिकतम शेष राशि लेता था और अपने और टुटेजा के लिए 15 प्रतिशत का हिस्सा काटने के बाद, वह शेष राशि राज्य के सर्वोच्च राजनीतिक पदाधिकारियों के निर्देशों के अनुसार नेताओं को देता था. अभियोजन पक्ष की शिकायत पर प्रतिक्रिया जताते हुए ढेबर और ढिल्लों के वकील फैजल रिजवी ने कहा कि उनके मुवक्किलों को मामले में झूठा फंसाया जा रहा है.

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