छत्तीसगढ़ चुनाव: बिलासपुर की ‘स्विंग बेल्ट’ कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए क्यों बढ़ा रही है चिंता?

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Chhattisgarh Elections 2023- छत्तीसगढ़ के बिलासपुर संभाग (Bilaspur division) की 25 सीटों पर शुक्रवार को मतदान होगा. कांग्रेस (Congress) और भाजपा (BJP) इस क्षेत्र में जोर आजमाइश कर रही हैं. यह संभाग इसलिए अहम है क्योंकि यह 90 सदस्यीय राज्य विधानसभा में लगभग एक तिहाई विधायकों को भेजता है. राज्य के पांच प्रशासनिक संभागों में से मध्य क्षेत्र में स्थित बिलासपुर संभाग में सबसे ज्यादा 25 विधानसभा क्षेत्र हैं जो इस बार विजेता का फैसला करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे.

यह एकमात्र संभाग है जिसे कांग्रेस 2018 में फतह नहीं कर पाई थी, जबकि भाजपा, जिसे अन्य जगहों पर हार का सामना करना पड़ा था, उसने इस क्षेत्र में अपनी लगभग आधी सीटें जीत लीं.

 

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12 कांग्रेस और बीजेपी ने जीती थी सात सीटें

2018 में संभाग में 24 सीटें थीं, जिनमें से कांग्रेस ने 12 जबकि भाजपा ने सात सीटें जीतीं. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दो और तत्कालीन अजीत जोगी के नेतृत्व वाली जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जोगी) ने तीन सीटें जीतीं.

सारंगढ़-बिलाईगढ़ के नए जिले के निर्माण के बाद, बिलाईगढ़ सीट, जो पहले रायपुर संभाग में थी, बिलासपुर संभाग में शामिल कर दी गई. 2018 में बिलाईगढ़ सीट कांग्रेस ने जीती थी.

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बीजेपी-कांग्रेस दोनों का जोर

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने इस बार बिलासपुर संभाग में प्रचार के लिए अपने शीर्ष नेताओं को तैनात किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने क्षेत्र में रैलियां कीं.

 

बिलासपुर संभाग में कितने जिले?

संभाग में पांच जिले शामिल हैं: रायगढ़ (लैलुंगा, रायगढ़, सारंगढ़, खरसिया, धरमजयगढ़ की विधानसभा सीटें शामिल हैं), कोरबा (रामपुर, कोरबा, कटघोरा, पाली-तानाखार, मरवाही शामिल हैं), बिलासपुर (कोटा, तख्तपुर, बिल्हा, बिलासपुर, बेलतरा, मस्तूरी), जांजगीर-चांपा (अकलतरा, जांजगीर-चांपा, सक्ती, चंद्रपुर, जैजैपुर, पामगढ़), मुंगेली (लोरमी और मुंगेली) और सारंगढ़-बिलाईगढ़ (बिलागढ़ सीट).

इनमें से तीन सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए और पांच सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं.

 

पार्टी के अपने-अपने दावे

छत्तीसगढ़ भाजपा प्रमुख और बिलासपुर के सांसद अरुण साव ने दावा किया कि आंतरिक सर्वेक्षणों के अनुसार, भगवा पार्टी 25 में से 20 सीटें जीत सकती है. साव, जो खुद लोरमी से मैदान में हैं उन्होंने कहा कि पार्टी ने संभाग से नए चेहरों के साथ-साथ वरिष्ठ नेताओं को भी मैदान में उतारा है.

विपक्ष के नेता नारायण चंदेल (जांजगीर-चांपा सीट), पूर्व आईएएस अधिकारी ओपी चौधरी (रायगढ़), भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत दिलीप सिंह जूदेव के परिवार के दो सदस्य – संयोगिता जूदेव (चंद्रपुर) और प्रबल प्रताप सिंह जूदेव (कोटा) – इस प्रभाग में अन्य प्रमुख भाजपा उम्मीदवारों में से हैं.

वहीं बिलासपुर से मौजूदा कांग्रेस विधायक शैलेष पांडेय का मुकाबला चार बार के विधायक और पूर्व मंत्री भाजपा के अमर अग्रवाल से है. पांडेय ने 2018 में अग्रवाल को हराया था. वहीं विधानसभा अध्यक्ष चरणदास महंत (सक्ती सीट) और राज्य मंत्री उमेश पटेल (खरसिया) और जयसिंह अग्रवाल (कोरबा) इस संभाग में सत्तारूढ़ दल के प्रमुख उम्मीदवारों में से हैं.

कांग्रेस को मालूम है कि पिछली बार उसने संभाग में बहुत अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था. इसलिए पार्टी ने संभाग में प्रचार के लिए विस्तृत योजना बनाई है. यहां खड़गे, राहुल और प्रियंका गांधी जैसे शीर्ष नेताओं ने इस बार क्षेत्र में आक्रामक रूप से प्रचार किया.

कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यह क्षेत्र एक प्रमुख कृषि क्षेत्र भी है, और पिछले पांच सालों में कांग्रेस सरकार की ओर से 2,600 रुपये प्रति क्विंटल पर धान की खरीद और इसकी न्याय योजना से पार्टी को चुनाव में मदद मिलेगी.

कांग्रेस ने सत्ता में बने रहने पर धान खरीद दर बढ़ाकर 3200 रुपये प्रति क्विंटल करने और कृषि ऋण माफ करने का भी वादा किया है.

जानकारों का मानना है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की किसान-ओबीसी नेता के रूप में छवि से भी कांग्रेस को मदद मिलेगी.

 

तीसरा मोर्चा बिगाड़ेगा समीकरण?

बिलासपुर क्षेत्र की कई सीटों पर त्रिध्रुवीय या बहुध्रुवीय मुकाबला निर्णायक कारक हो सकता है, जहां छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री दिवंगत अजीत जोगी का काफी प्रभाव है.

वहीं 2018 में दो सीटों पर दूसरे स्थान पर रहने वाली बसपा ने इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी (जीजीपी) के साथ गठबंधन किया है. आम आदमी पार्टी भी मैदान में है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने बिलासपुर में जनसभा भी की थीं.  हालांकि, दोनों राष्ट्रीय दलों का दावा है कि मुकाबला द्विध्रुवीय होगा.

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