चित्रकोट वाटरफॉल: बारिश के मौसम में शबाब पर है बस्तर का ‘मिनी नियाग्रा’, देखिए लेटेस्ट तस्वीर

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मिनी नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध बस्तर के चित्रकोट वाटरफॉल की खूबसूरती बारिश के मौसम में अलग ही नजर आती है. चित्रकोट जलप्रपात अपने हर मौसम में अलग अलग ही रूप दिखाई देता है. बारिश का मौसम शुरू होते ही चित्रकोट को निहारने दूरदराज से पर्यटक पहुचने लगे हैं. चित्रकोट वाटरफॉल देश के सबसे बड़े और खूबसूरत वाटरफॉल्स में से एक माना जाता है.पिछले कई दिनों से हो रही बारिश ने इसकी खूबसूरती और बढ़ा दी है.

बस्तर ज़िले में स्थित चित्रकोट वाटरफॉल करीब 90 फीट की ऊंचाई से गिरता है. ये झरना अपनी खूबसूरती की वजह से यहां आने वालों को मंत्रमुग्ध कर देता है. यही वजह है कि इसे भारत का नियाग्रा फॉल्स भी कहा जाता है. बारिश के इस मौसम में इसकी खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है. दूर-दराज से आए पर्यटकों को चित्रकोट का सौंदर्य काफी लुभाता है. यही वजह है कि लोग इसका नजारा लिए बगैर बस्तर की सैर को अधूरा मानते हैं.

पर्यटकों का कहना है कि वे पहले भी इसका सौंदर्य निहार चुके हैं. बावजूद इसके उन्हें जब भी बस्तर आने का मौका मिलता है, तो वे चित्रकोट को एक बार फिर से देखने पहुंच जाते हैं. संभाग मुख्यालय से इसकी दूरी 40 किलोमीटर है. नजदीक होने की वजह से लोग बड़ी संख्या में वाटरफॉल देखने चले जा जाते हैं.

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घोड़े की नाल जैसा है आकार

घोड़े की नाल के आकार का होने के चलते वाटरफॉल का आकार भव्य दिखता है. यह प्रपात इन्द्रावती नदी पर बनता है. 90 फिट की उंचाई से इन्द्रावती की धारा गर्जना करते हुये जब नीचे गिरती है जो अद्भुत माहौल बनता है. जल धारा काफी मनमोहक ध्वनि भी उत्पन्न करती है. चित्रकोट जलप्रपात की सबसे बडी विशेषता यह है कि वर्षा के दिनों में यह रक्त लालिमा धारण लिए हुए दिखाई पड़ता है, तो गर्मियों की चाँदनी रात में यह बिल्कुल दूधिया सफ़ेद दिखाई पड़ता है.

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छत्तीसगढ़ राज्य में और भी कई जलप्रपात हैं, लेकिन चित्रकूट जलप्रपात इन सभी से बड़ा और बेहद खुबसूरत है. जुलाई से अक्टूबर तक बारिश के मौसम में झरने से धुंध पर प्रतिबिंबित होने वाली सूर्य की किरणों से इंद्रधनुष बनते हुए भी दिखाई पड़ता है.

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रामायण काल से भी जुड़ी है इसकी मान्यता

चित्रकोट वाटरफॉल को लेकर पुरानी मान्यतायें भी जुड़ी हैं. इन मान्यताओं के मुताबिक भगवान श्रीराम, लक्ष्मण और सीता माता अपने 14 वर्ष के वनवास के दौरान चित्रकोट वाटरफॉल में अपना समय बिताया था. इसके बाद दंडकारण्य के रास्ते होते हुए ही तेलंगाना के भद्राचलम पहुंचे थे. बस्तर को आदिकाल से दंडकारण्य के नाम से जाता है. इस संबंध में इतिहासकार बताते हैं कि भगवान राम ने अपने वनवास के दौरान चित्रकोट में रुक कर शिवलिंग स्थापित कर पूजा अर्चना भी की थी.

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