Chhattisgarh Leader of Opposition- बुधवार को कांग्रेस विधायक दल की बैठक में शामिल होने पहुंचे पार्टी के वरिष्ठ नेता चरण दास महंत के चेहरे में मुस्कान बराबर बनी हुई थी. यह अपना गढ़ बचाने का संतोष भाव था या फिर सीएलपी नेता चुने जाने का अंदेशा, इसे लेकर पुख्ते तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता लेकिन पार्टी ने अब शनिवार को छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष महंत को राज्य में अपने विधायक दल का नेता नामित किया. यानी वे अब नेता प्रतिपक्ष की नई भूमिका में नजर आएंगे.
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विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथों भारी हार झेलने के कुछ दिनों बाद कांग्रेस ने पार्टी के दिग्गज नेता को इस अहम के लिए उपयुक्त समझा. राज्य कांग्रेस इकाई की ओर से साझा की गई एक विज्ञप्ति के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने पांचवीं बार के विधायक महंत को तत्काल प्रभाव से छत्तीसगढ़ के सीएलपी नेता के रूप में नियुक्त करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी.
एआईसीसी महासचिव केसी वेणुगोपाल की ओर से जारी विज्ञप्ति के मुताबिक, कांग्रेस अध्यक्ष ने दीपक बैज को छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में बरकरार रखने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी है. बता दें कि राज्य कांग्रेस अध्यक्ष और पार्टी सांसद बैज हाल के विधानसभा चुनाव में चित्रकोट क्षेत्र से भाजपा के विनायक गोयल के खिलाफ 8,370 मतों के अंतर से हार गए.
बघेल की भूमिका क्या होगी?
महंत और बैज पर पार्टी ने भरोसा जताकर अपनी रणनीति के धागे तो काफी हद खोल दिए हैं. लेकिन सवाल ये भी है कि अब प्रदेश में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की भूमिका किस तरह की होगी?
हांलाकि बघेल ने महंत को नेता विपक्ष चुने जाने पर खुशी भी जताई. उन्होंने एक्स पर लिखा, “वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं सक्ती विधायक, बड़े भैया डॉ चरण दास महंत जी को कांग्रेस विधायक दल का नेता नियुक्त किए जाने पर बधाई एवं शुभकामनाएं. संसदीय मामलों में आपका प्रदीर्घ अनुभव निश्चित ही हम सबके लिए लाभकारी सिद्ध होगा.”
जानकारों का मानना है कि बघेल की सहमति के बाद ही पार्टी ने इस संबंध में निर्णय लिया होगा. क्योंकि बघेल की लोकप्रियता अब भी उनके समर्थकों के बीच है, लिहाजा उन्हें दरकिनार नहीं किया जा सकता.
इसलिए महंत पर आलाकमान को भरोसा?
छत्तीसगढ़ में महंत सर्वमान्य नेता के तौर पर देखे जाते हैं. महंत ने निवर्तमान छत्तीसगढ़ विधानसभा में अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था. 69 वर्षीय अनुभवी राजनेता महंत ने हाल के चुनावों में भाजपा के खिलावन साहू को 12,395 वोटों से हराकर सक्ती सीट बरकरार रखी. साथ ही जांजगीर-चांपा जिले में आने वाले सभी सीटों पर भी उनका प्रभाव नजर आया.
-जब कांग्रेस ने 2018 में विधानसभा चुनाव जीता था तब अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) समुदाय से आने वाले महंत, छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री पद के लिए भूपेश बघेल, टीएस सिंह देव और ताम्रध्वज साहू के साथ सीएम रेस में थे.
-महंत अविभाजित मध्य प्रदेश में तीन बार विधायक चुने गए और मध्य प्रदेश सरकार में गृह और जनसंपर्क विभाग मंत्री (1995-1998) के रूप में कार्य किया. वह साल 2018 और 2023 में दो बार छत्तीसगढ़ विधानसभा के लिए चुने गए.
-महंत 1998, 1999 और 2009 में तीन बार लोकसभा के सदस्य के रूप में चुने गए. उन्हें 2011 में मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार में केंद्रीय कृषि और खाद्य प्रसंस्करण राज्य मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था.
-महंत ने 2013 में लगभग छह महीने तक छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया था. वह 2004 से 2013 के बीच कई बार पार्टी की राज्य इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष रहे, लेकिन 2008 और 2013 दोनों विधानसभा चुनावों में पार्टी को सत्ता में नहीं ला सके.
अब लोकसभा चुनाव पर कांग्रेस की नजर
राज्य में विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार हुई और भाजपा ने 90 में से 54 सीटों पर जीत हासिल की, जिससे पूर्ववर्ती सत्तारूढ़ पार्टी 35 सीटों पर सिमट गई. इसके बाद पार्टी के नवनिर्वाचित विधायकों ने बुधवार को सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर खड़गे को छत्तीसगढ़ में अपना नेता चुनने के लिए अधिकृत किया. लिहाजा पार्टी ने अब दो दिग्गजों को महत्वपूर्ण भूमिकाएं दी है. जानकारों का कहना है कि कांग्रेस जहां अपनी हार पर मंथन कर रही है, वहीं लोकसभा चुनावों पर भी उनकी निगाह बराबर बनी है. ऐसे में पार्टी, संगठन में व्यापक फेरबदल का जोखिम मोल नहीं लेना चाहती इसलिए पार्टी ने महंत के अनुभव को प्राथमिकता दी, साथ ही आदिवासी समाज से आने वाले बैज को भी पीसीसी प्रमुख के तौर पर बरकरार रखा. अब इस रणनीति का पार्टी को कितना लाभ होता है यह आने वाला वक्त ही बताएगा.
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