छत्तीसगढ़ बनने के बाद अभी तक इन 9 सीटों पर नहीं जीत पाई है भाजपा, इस बार बदली रणनीति

Chhattisgarh Elections 2023- भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों तक शासन किया है, लेकिन 2000 में राज्य के गठन के बाद से वह कभी भी…

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Chhattisgarh Elections 2023- भाजपा ने छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों तक शासन किया है, लेकिन 2000 में राज्य के गठन के बाद से वह कभी भी नौ निर्वाचन क्षेत्रों में जीत दर्ज नहीं कर पाई है. हालांकि इस परंपरा को उलटने की उम्मीद करते हुए, पार्टी ने इनमें से छह सीटों के लिए नए चेहरों को चुनावी मैदान में उतारा है. छत्तीसगढ़ में दो चरणों में 7 और 17 नवंबर को मतदान होगा.

इन नौ सीटों में से, सीतापुर, पाली-तानाखार, मरवाही, मोहला-मानपुर और कोंटा अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जबकि शेष चार – खरसिया, कोरबा, कोटा और जैजैपुर – सामान्य निर्वाचन क्षेत्र हैं.

छत्तीसगढ़ के मध्य प्रदेश से अलग होने के बाद, भाजपा ने राज्य में 2003, 2008 और 2013 में लगातार तीन विधानसभा चुनाव जीते, और क्रमशः 50, 50 और 49 सीटें हासिल कीं. 2018 में कांग्रेस ने 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतकर रमन सिंह सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया. बीजेपी 15 सीटों पर सिमट गई.

ऐसे में इस बार नए उम्मीदवारों को मौका देकर पार्टी नई रणनीति के साथ इस चुनाव में नजर आ रही है.

 

बस्तर सीट: 1998 से अजेय हैं लखमा

राज्य के उद्योग मंत्री कवासी लखमा, बस्तर क्षेत्र के एक प्रभावशाली कांग्रेस आदिवासी नेता और पांच बार के विधायक, नक्सल प्रभावित कोंटा सीट पर 1998 से अजेय हैं.

भाजपा ने नए चेहरे सोयम मुक्का को मैदान में उतारा है, जो माओवाद विरोधी नागरिक मिलिशिया सलवा जुडूम (जिसे 2011 में भंग कर दिया गया था) के पूर्व कार्यकर्ता हैं.

इस सीट पर ज्यादातर कांग्रेस, बीजेपी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिला है. 2018 के विधानसभा चुनावों में, लखमा को 31,933 वोट मिले, जबकि भाजपा के धनीराम बारसे और सीपीआई के मनीष कुंजाम को क्रमशः 25,224 वोट और 24,549 वोट मिले.

 

सीतापुर से लगातार जीतते रहे हैं अमरजीत भगत

सरगुजा संभाग से कांग्रेस के एक और प्रभावशाली आदिवासी नेता और भूपेश बघेल सरकार में मंत्री अमरजीत भगत राज्य गठन के बाद से ही सीतापुर निर्वाचन क्षेत्र से जीतते रहे हैं.

भाजपा ने हाल ही में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) से इस्तीफा देकर भगवा पार्टी में शामिल हुए राम कुमार टोप्पो (33) को इस सीट से उम्मीदवार बनाया है.

 

खरसिया सीट पर पटेल पिता-पुत्र का परचम

इसी तरह, कांग्रेस सरकार में एक और मंत्री, उमेश पटेल, खरसिया सीट से लगातार तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं. न केवल राज्य के गठन के बाद से, बल्कि 1977 में मध्य प्रदेश के हिस्से के रूप में अस्तित्व में आने के बाद से यह निर्वाचन क्षेत्र कांग्रेस का गढ़ रहा है.

उमेश पटेल के पिता नंद कुमार पटेल, तत्कालीन राज्य कांग्रेस प्रमुख, जो 2013 में बस्तर में झीरम घाटी नक्सली हमले में मारे गए थे, इस सीट से पांच बार चुने गए थे.

खरसिया से बीजेपी ने नए चेहरे महेश साहू को मैदान में उतारा है.

 

मरवाही और कोटा में अभी तक सेंध नहीं लगा पाई है भाजपा

मरवाही और कोटा सीटें भी कांग्रेस का गढ़ रही हैं, इससे पहले 2018 में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) ने दोनों सीटें जीती थीं.

साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद कांग्रेस सरकार के पहले मुख्यमंत्री बने जोगी ने 2001 में मरवाही से उपचुनाव जीता. बाद में उन्होंने 2003 और 2008 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में यह सीट जीती.

2013 में, उनके बेटे अमित जोगी ने मरवाही से सफलतापूर्वक चुनाव लड़ा और 2018 में, अजीत जोगी अपने नवगठित संगठन जेसीसी (जे) के टिकट पर यहां से मैदान में उतरे और जीत हासिल की.

हालांकि, 2020 में अजीत जोगी की मृत्यु के कारण आवश्यक उपचुनाव में कांग्रेस ने इस निर्वाचन क्षेत्र पर कब्जा कर लिया.

अजीत जोगी की पत्नी रेणु जोगी ने 2006 में कांग्रेस विधायक राजेंद्र प्रसाद शुक्ला की मृत्यु के बाद कोटा सीट पर हुए उपचुनाव में जीत हासिल की थी. इसके बाद उन्होंने 2008 और 2013 के चुनावों में सीट जीती और 2018 में जेसीसी (जे) के उम्मीदवार के रूप में चौथी बार सीट जीती.

भाजपा ने क्रमशः कोटा और मरवाही सीटों से नए चेहरे प्रबल प्रताप सिंह जूदेव और प्रणव कुमार मरपच्ची को मैदान में उतारा है.

राज्य भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व उपाध्यक्ष जूदेव, भाजपा के दिग्गज नेता दिवंगत सिंह जूदेव के बेटे हैं, जबकि मारपच्ची ने भारतीय सेना में काम किया है.

कांग्रेस ने मरवाही से अपने निवर्तमान विधायक केके ध्रुव और कोटा से छत्तीसगढ़ पर्यटन बोर्ड के अध्यक्ष अटल श्रीवास्तव को मैदान में उतारा है.

 

इन चार सीटों पर भी नहीं खुल पाया है भाजपा का खाता

चार अन्य सीटें – कोरबा, पाली-तानाखार, जैजैपुर और मोहला-मानपुर- जहां भाजपा ने अभी तक अपना खाता नहीं खोला है. पाली-तानाखार सीट पर एक दिलचस्प लड़ाई देखने को मिल रही है, जहां भाजपा ने राम दयाल उइके को मैदान में उतारा है, जो 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस छोड़कर भाजपा में लौट आए थे.

उइके, जो 1998 में मारवाही सीट से भाजपा विधायक के रूप में चुने गए थे, कांग्रेस में शामिल हो गए और अजीत जोगी के छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने के बाद विधानसभा में उनके प्रवेश का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपनी सीट खाली कर दी.

कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में, उइके ने 2003 में तानाखार (जो परिसीमन के बाद पाली-तानाखार बन गया) और उसके बाद 2008 और 2013 में पाली-तानाखार से जीत हासिल की.

वह 2018 में भाजपा में लौट आए और पाली-तानाखार से चुनाव लड़ा लेकिन कांग्रेस उम्मीदवार से हार गए. उइके को भाजपा ने यहां से फिर से उम्मीदवार बनाया है, जबकि कांग्रेस ने अपने मौजूदा विधायक मोहित राम को टिकट नहीं दिया है और उनकी जगह एक महिला उम्मीदवार दुलेश्वरी सिदार को मैदान में उतारा है.

बघेल सरकार के एक अन्य मंत्री जय सिंह अग्रवाल कोरबा निर्वाचन क्षेत्र में 2008 से अजेय हैं. भाजपा ने कोरबा से कांग्रेस के अग्रवाल के खिलाफ अपने पूर्व विधायक लखनलाल देवांगन को मैदान में उतारा है.

जैजैपुर (जांजगीर-चांपा) सीट वर्तमान में दो बार के बहुजन समाज पार्टी (बसपा) विधायक केशव चंद्रा के पास है. कांग्रेस ने अपने जिला युवा कांग्रेस प्रमुख बालेश्वर साहू और भाजपा ने अपने जिला इकाई प्रमुख कृष्णकांत चंद्रा को मैदान में उतारा है.

मोहला-मानपुर सीट पर कांग्रेस ने निवर्तमान विधायक इंद्रशाह मंडावी को मैदान में उतारा है, जबकि पूर्व विधायक संजीव शाह भाजपा की पसंद हैं.

 

इन सीटों पर कांग्रेस को भी है जीत का इंतजार

भाजपा की तरह, कांग्रेस को अभी भी तीन सीटों – रायपुर शहर दक्षिण, वैशाली नगर और बेलतरा – पर जीत हासिल करना बाकी है, जो राज्य के गठन के बाद 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई थीं.

रायपुर शहर दक्षिण एक शहरी निर्वाचन क्षेत्र है, जिस पर भाजपा के प्रभावशाली नेता और सात बार विधायक रहे पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल का कब्जा है. कांग्रेस ने अपने पूर्व विधायक और रायपुर स्थित लोकप्रिय दूधाधारी मठ के महंत महंत राम सुंदर दास को अग्रवाल के खिलाफ मैदान में उतारा है.

वैशाली नगर सीट बीजेपी विधायक विद्यारतन भसीन के निधन के बाद खाली है. भाजपा और कांग्रेस दोनों ने क्रमशः रिकेश सेन और मुकेश चंद्राकर – नए चेहरे उतारे हैं.

बेलतरा में, भाजपा ने अपने मौजूदा विधायक रजनीश सिंह को टिकट नहीं दिया और एक नया चेहरा सुशांत शुक्ला को लाया, जबकि कांग्रेस बिलासपुर ग्रामीण इकाई के अध्यक्ष विजय केसरवानी सत्तारूढ़ पार्टी के उम्मीदवार हैं.

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