झीरम घाटी हत्याकांड मामले में अब आगे क्या होगा?

Jheeram Ghati naxal attack Case- 25 मई 2013 का काला दिन कौन भूल सकता है जब कांग्रेस की परिवर्तन रैली के काफिले पर हुए नक्सली…

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Jheeram Ghati naxal attack Case- 25 मई 2013 का काला दिन कौन भूल सकता है जब कांग्रेस की परिवर्तन रैली के काफिले पर हुए नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दिग्गजों की मौत हो गई थी. कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल, वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या चरण शुक्ल और बस्तर के नेता महेंद्र कर्मा सहित कांग्रेस का राज्य नेतृत्व इस हमले में खत्म हो गया था.

तब से लेकर आज तक पीड़ित परिवार और छत्तीसगढ़ की जनता इस मामले में न्याय मिलने के इंतजार में है. लेकिन एनआईए और छत्तीसगढ़ पुलिस की खींचतान में अब तक इसका सच सामने नहीं आ पाया.

लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले से कांग्रेस के भीतर न्याय की आस जगी है. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने झीरम घाटी नक्सली हमले में बड़ी साजिश का आरोप लगाने वाली एक प्राथमिकी की छत्तीसगढ़ पुलिस की जांच के खिलाफ एनआईए की याचिका मंगलवार को खारिज कर दी.

कोर्ट के फैसले के बाद मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने जांच का रास्ता खोल दिया है. उम्मीद है कि छत्तीसगढ़ पुलिस की जांच से सच सामने आएगा, जिस सच पर लगातार पर्दा डालने की कोशिश की गई.

इस पूरे मसले पर देखिए यह खास चर्चा-

क्या है मामला?

तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के शासन काल में यह हमला हुआ था. माओवादियों ने कांग्रेस के पूरे राज्य नेतृत्व का सफाया कर दिया था. 25 मई 2013 को कांग्रेस की रैली के काफिले पर हुए नक्सली हमले में छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दिग्गजों की मौत हो गई थी. तब कांग्रेस के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष नन्द कुमार पटेल, वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्या चरण शुक्ल एवं बस्तर के नेता महेंद्र कर्मा सहित 32 लोगों शामिल थे.

कांग्रेस के वरिष्ठ कांग्रेस नेता विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल, महेंद्र कर्मा, उदय मुदलियार, दिनेश पटेल,योगेन्द्र शर्मा सहित अनेक नेता और सुरक्षा बलों की मौत हुई थी. इस हमले में नक्सलियों ने नृशंसता की सारी हदें लांघते हुए बस्तर के नेता महेंद्र कर्मा पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसाने के बाद उनके शरीर को चाकुओं से गोद डाला था.  नक्सली उनके शव के ऊपर चढ़कर नाचते रहे. नंदकुमार पटेल और उनके पुत्र दिनेश पटेल पर गोलियां दागते हुए भी क्रूर माओवादियों का जरा भी दिल नहीं पसीजा.

 

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