CG Horror Village: छत्तीसगढ़ के इस गांव में सिंदूर नहीं लगाती महिलाएं, अनजान डर का है साया!

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित अनोखा और डरावना गांव, जहां सदियों से चली आ रही है विवाहित महिलाओं के लिए एक अजीब प्रथा. महिलाओं को सोलह श्रृंगार, मांग में सिंदूर, लकड़ी की कुर्सी पर बैठना, खाट पर सोना जैसी तमाम चीजें वर्जित हैं.

Sandbhara Village and Womens

Sandbhara Village and Womens

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CG Horror Village Sandbahra: विवाह संस्कार के बाद लड़की दूसरे कुल में जाती है और वहां अपनी जिम्मेदारियां निभाती हैं. हिंदू धर्म में 7 फेरों का विशेष महत्व माना गया है. मंत्रोच्चारण के साथ फेरे की रस्म होती है. इस दौरान लड़का लड़की की मांग में सिंदूर भरता है. सिंदूर दान के बाद पैरों में बिछिया पहनाई जाती है. परंपरा के मुताबिक मांग में सिंदूर और पैरों में बिछिया एक सुहागन की पहचान होती है. महिलाओं का 16 श्रृंगार सिंदूर और बिछिया के बिना अधूरा माना जाता है लेकिन छत्तीसगढ़ के इस गांव में जहां महिलाओं ने कई दशकों से न अपनी मांग में सिंदूर भरी है, न शादी के बाद आज तक सोलह श्रृंगार किया है, न खुर्शी पर बैठी हैं, और न ही खाट पर अपनी नींद पूरी की है. 

छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में स्थित यह अनोखा और डरावना गांव संदबाहरा, जहां सदियों से चली आ रही है विवाहित महिलाओं के लिए एक अजीब प्रथा. महिलाओं को सोलह श्रृंगार, मांग पर सिंदूर, लकड़ी की कुर्सी में बैठना, खाट पर सोना जैसी तमाम चीजें वर्जित है.

माना जाता है कि अगर महिलाएं ऐसा करती हैं तो गांव में विपदा आ जाएगी.

Village Womens

ग्रामीण ने बताई अजीब बात

धमतरी जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है संदबाहरा गांव. यहां की अजबों-गरीब परंपरा पूरे इलाके मे चर्चित है. छत्तीसगढ़ Tak से बात करते हुए एक ग्रामीण ने बताया कि गांव में तकरीबन 40 परिवार रहते हैं और यह गांव अपनी एक परंपरा के चलते जाना जाता है. यहां महिलाओं को खाट, पलंग, कुर्सी इत्यादि पर बैठने की इजाजत नहीं है. इसी तरह महिलाओ को श्रृंगार करने की भी मनाही है.

ग्रामीण ने बताया कि गांव में ऐसी मान्यता है अगर महिलाएं ऐसा करेंगी तो ज्यादा समय तक जिंदा नहीं रहेंगी या फिर उन्हें कोई न कोई बीमारी जरूर हो जाएगी. 

Sandbhara Village

डर के साए में महिलाएं

छत्तीसगढ़ Tak से बात करते वक्त गांव की महिलाओं ने बताया कि गांव मे कोई भी खुशी का पल हो दिवाली, दशहरा या कोई भी तीज-त्यौहार लेकिन महिलाए श्रृंगार नहीं करती बिंदिया, पायल, लिपस्टिक तो दूर की बात है. उन्होंने बताया कि यहां महिलाए मांग मे सिंदूर तक नहीं लगाती इसके पीछे सिर्फ एक डर है. जिससे गांव की कोई भी महिला आज तक तोड़ने की जुर्रत नहीं की हैं. यह परंपरा इस गांव मे आने वाले दूसरे गांवो के लोगों पर भी लागू होता है. 

गांव में सभी लोग आज भी अंजाने खौफ के साये मे अपना जीवन बिता रहे है. हमेशा गांव वालों को डर बना रहता है कि परंपरा तोड़ने से गांव मे कोई भी अनहोनी हो सकती है हालांकि कई समाजिक कार्यकर्ताओं ने यहां के लोगो को जाकर समझाया की ये सब अधंविश्वास की बाते है लेकिन गांव वालों ने किसी की एक ना सुनी और इस परंपरा को सदियों से निभाते आ रहे है. 

Womens Sitting On Floor

गांव में क्या है महिलाओं के बैठने की व्यवस्था?

ग्रामीण महिलाओं नें छत्तीसगढ़ Tak से बात करते वक्त बताया कि गांव में महिलाओं के बैठने के लिए ईंट-सीमेंट के आट और टीलों का निर्माण किया गया है. घर के अंदर महिलाएं फर्श पर ही सोती हैं. महिलाओं को किसी भी तरह के बेड और चारपाई पर सोने-बैठने की मनाही है.

परंपरा के पीछे है ये कहानी...

ग्रामीण ने बताया कि दरअसल इसके पीछे एक कहानी छुपी है गांव के बड़े बुर्जुर्ग बताते है कि गांव की देवी ऐसा करने से नाराज हो जाती है और गांव पर संकट आ जाता है. गांव में ही एक पहाड़ी है जहां कारीपठ देवी रहती हैं. 

गांव प्रमुख की माने तो 1960 में एक बार गांव के लोगों ने इस परंपरा को तोड़ा था जिसके बाद गांव की महिलाओं को कई तरह की बीमारियों ने घेर लिया और महिलाओं की मौते भी होने लगी. यहां तक जानवर मरने लगे और बच्चों को भी तमाम बीमार होने लगी. सबको यही यही लगा कि ये देवी का प्रकोप है और परंपरा टूटने के कारण ऐसा हुआ है. इसके बाद किसी ने भी इस परंपरा को तोड़ने की हिमाकत नही की है. 

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