Bijapur Naxal Encounter- लोकसभा चुनाव के लिए मतदान से पहले छत्तीसगढ़ के बीजापुर में हुए नक्सल एनकाउंटर के बाद कई सवाल तैर रहे हैं. एक तरफ जहां इसे सुरक्षाबलों की सबसे बड़ी कामयाबी मानी जा रही है, वहीं दूसरी ओर नक्सलियों की युद्धनीति की हार भी कही जा रही है. बता दें कि मंगलवार को सुरक्षाबलों के साथ मुठभेड़ में 13 माओवादियों की मौत हुई थी.
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साल 1969 में पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी में जन्मे नक्सलवाद ने 80 के दशक से दण्डकारण्य में पैर पसारना शुरू किया था. बीते दो दशक में बस्तर में नक्सली घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ. खासकर टीसीओसी यानि टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन के दौरान.
दरअसल, गुरिल्ला युद्ध में दक्ष माओवाद संगठन पतझड़ शुरू होते ही काफी आक्रामक हो जाता है. बीते दो दशक में टीसीओसी के दौरान बस्तर में माओवाद संगठन ने बड़ी हिंसक घटनाओं को अंजाम दिया है. इनमें साल 2010 में ताड़मेटला में 76 जवानों की शहादत से लेकर मई 2013 में झीरम नरसंहार जैसी हृदयविदारक घटना शामिल है.
हालांकि अब हालात धीरे-धीरे बदल रहे हैं.
यह पहली बार है जब टीसीओसी के दौरान माओवाद संगठन को उनके गढ़ में मुंह की खानी पड़ी है.
इस साल 43 माओवादी ढेर!
इस साल की शुरूआत से लेकर अब तक जवानों ने करीब 43 माओवादियों को ढेर कर दिया है. इनमें से करीब 25 माओवादियों को टीसीओसी के दौरान ही एनकाउंटर में मार गिराया गया है. इसके अलावा 181 नक्सलियों को गिरफ्तार किया गया. जबकि 120 नक्सलियों ने सरेंडर किया है.
कैंप की वजह से कमजोर पड़े नक्सली?
नक्सल मोर्चे पर पुलिस की इस बड़ी सफलता के पीछे माओवादियों के अभेद इलाकों में नए कैंपों की स्थापना को बड़ी वजह बताया जा रहा है. जिससे नक्सल संगठन की पकड़ अपने आधार इलाकों में कमजोर पड़ती जा रही है. बीजापुर का गंगालूर इलाका जिसे कभी माओवादियों की अघोषित उपराजधानी भी कहा जाता था, अब यहां मुतवेण्डी, कावड़गांव, डुमरीपालनार के अलावा बीजापुर सुकमा के सरहदी इलाके टेकुलगुड़म, गुंडेम के साथ दुर्दांत माओवादी हिंड़मा के गढ़ उसके गांव पुवर्ती में फोर्स कैंप कर चुकी है.
2 अप्रैल को नेंडरा के जंगल में माओवादियों की कंपनी नंबर दो के साथ मुठभेड़ के बाद जवानों ने 14 माओवादियों को ढेर कर दिया. जिसे बस्तर में टीसीओसी के दौरान स्टेट पुलिस के लिए इसे बड़ी उपलब्धि से जोड़ कर देखा जा रहा है.
एनकाउंटर से ना सिर्फ नक्सल संगठन का मनोबल टूटा है बल्कि जिसे नक्सल संठगठन अब तक अपना महफूज ठीकाना मानता आया है, गढ़ में घुसकर जवानों की ताबड़तोड़ कार्रवाई ने माओवाद संगठन की गुरिल्ला नीति पर करारी चोट पहुंचाई है.
होते रहे हैं बड़े नक्सल हमले...
आंकड़ों पर नजर डालें तो बीते दो दशक में टीसीओसी के दौरान बस्तर की जमी नक्सल संगठन की हरकतों से रक्तरंजित होती आई है.
- तीन अप्रैल 2021 में सुकमा और बीजापुर जिलों की सीमा पर नक्सलियों ने घात लगाकर हमला किया था. इस हमले में 22 जवान शहीद हुए थे.
- 21 मार्च, 2020 को सुकमा के मिनपा इलाके में नक्सली हमले में 17 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए थे.
- 9 अप्रैल 2019 को दंतेवाड़ा जिले में एक नक्सली विस्फोट में भाजपा विधायक भीमा मंडावी और चार सुरक्षा कर्मी मारे गए थे और सुकमा में 24 अप्रैल 2017 को बुरकापाल हमले में सीआरपीएफ के 25 जवान शहीद हुए थे.
- साल 2010 में ताड़मेटला में हुए सबसे बड़े नक्सली हमले में 76 जवानों की शहादत हुई थी. इसी तरह रानीबोदली में 56 जवान मारे गए थे.
-बीते साल दंतेवाड़ा अरनपुर में माओवादी हमले में 10 डीआरजी के जवानों को अपनी जान गंवानी पड़ी थी.
चौतरफा घेराबंदी में फंस गए नक्सली!
2 अप्रैल को माओवादियों के लड़ाकू दस्ते को नेस्तानाबुत करने के लिए जवानों ने चौतरफा घेराबंदी की थी. मुतवेंडी, पालनार, गंगालूर, बासागुड़ा, चेरपाल से सुरक्षा बल के जवान हथियारों से लैस होकर जंगल में दाखिल हुए थे. कोर इलाके में दाखिल होते ही इनका सामना नक्सलियों से हुआ. अत्याधुनिक हथियारों से लैस माओवादियों ने जवानों पर हमला बोला, लेकिन नक्सलियों के सुरक्षा कवच को भेदते हुए जवानों ने 14 माओवादियों को मौके पर ढेर कर दिया. सुबह 6 बजे से शुरू हुई मुठभेड़ पूरे दिन जारी थी. बावजूद टीसीओसी के बीच जवानों की युद्ध नीति नक्सलियों पर भारी पड़ गई और बासागुड़ में 6 माओवादियों को ढेर करने के बाद साल के सबसे बड़े एनकाउंटर को अंजाम देने में जवान सफल रहे.
बीजापुर से पी रंजन दास की रिपोर्ट
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