TS Singh Deo News- छत्तीसगढ़ के उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव को हाईकोर्ट से बड़ी राहत मिली है. अंबिकापुर के सत्तीपारा में स्थित सिंहदेव परिवार के स्वामित्व की भूमि को लेकर तरूनीर संस्था की ओर से हाईकोर्ट बिलासपुर में दाखिल जनहित याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है. सत्तीपारा के शिवसागर तालाब एवं मौलवी बांध के कुल 54.20 एकड़ भूमि में से 33 एकड़ भूमि का लैंड यूज 1996 में बदल दिया गया था. इसे लेकर हाईकोर्ट में तरूनीर समिति ने जनहित याचिका लगाई थी.
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उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव के वकील संतोष सिंह, अरविंद सिंह और हेमंत तिवारी ने संयुक्त पत्रकार वार्ता करते हुए जानकारी दी कि शिवसागर बांध जिसे आम बोलचाल की भाषा में मौलवी बांध के नाम से भी जाना जाता है, वहां स्थित भूमि के मामले में माननीय उच्च न्यायालय ने सिंहदेव के पक्ष में फैसला सुनाते हुए याचिका को खारिज कर दिया है.
उन्होंने कहा कि एक फर्जी मामले में सरगुजा के महाराज और उपमुख्यमंत्री टीएस सिंह देव की छवि को शहर के कुछ लोग धूमिल करने का प्रयास कर रहे थे लेकिन माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद आज सच्चाई सबके सामने आ गई है.
क्या है मामला?
वरिष्ठ अधिवक्ताओं ने बताया कि राज परिवार और भारत सरकार के बीच जब सेटलमेंट हो रहा था तब शिवसागर बांध और उसके आसपास की भूमि को सरगुजा रियासत के लिए छोड़ दिया गया था. उन्होंने बताया, “टीएस सिंहदेव उपमुख्यमंत्री के विरुद्ध कुछ व्यक्तियों ने भ्रामक दुष्प्रचार करते हुए असत्य आधारों पर विभिन्न न्यायालयों में प्रकरण प्रस्तुत किया गया. उन्होंने बताया कि खसरा क्रमांक 3467 के रकबा 52.6 एकड़ जिसे शिवसागर बांध के नाम से लोग जानते है, उपरोक्त भूमि के 52.6 एकड़ में से मात्र 21 एकड़ में ही तालाब या जल क्षेत्र स्थित था. शेष भूमि जिसका रकबा 33.18 एकड़ जिसमें जल क्षेत्र न होने और खुली भूमि होने के कारण उनके छोटे भाई अरुणेश्वर शरण सिंहदेव द्वारा उपरोक्त खुली भूमि का रकबा नोइयत परिवर्तित करने के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया. कलेक्टर सरगुजा ने विधिवत जांच करते हुए विधिवत रा०प्र०क्र० 32/अ-2/95-96 में खसरा क्रमांक 3467 एवं 3385 के कुल रकबा 54.20 एकड़ में से मात्र 21 एकड़ में तालाब होने के कारण उसे पूर्णतः मूल खसरा क्र. 3467 रुप में राजस्व पत्रों में अंकित किया. शेष रकबा 33.18 एकड़ को खुली भूमि के रुप में आवेदन के नाम से राजस्व पत्रों में अंकित करने का निर्देश दिनांक 05.11.96 के आदेश में दिया गया.”
वकीलों ने बताया कि लगभग 20 साल बाद तरुनीर संस्था के अध्यक्ष कैलाश मिश्रा की ओर से दिनांक 08.12.16 और 11.08.17 को कलेक्टर सरगुजा के समक्ष शिकायत किया गया. दिनांक 24.10.16 को विशाल राय जो तरुनीर के पदाधिकारी के शिकायत पर कलेक्टर सरगुजा द्वारा विधिवत जांच कर दिनांक 22.02.17 को राज्य शासन को यह प्रतिवेदन दिया गया कि आवेदक की भूमि का व्यपवर्तन विधिवत किया गया है. उपरोक्त आदेश के बाद आलोक दुबे ने एन.जी.टी. भोपाल के समक्ष प्र०क्र० 6/19 प्रस्तुत किया गया जिसे 27.08.21 के आदेश यह कहते हुए निरस्त किया गया कि उक्त भूमि का व्यपवर्तन विधिवत किया गया है. उक्त आदेश के विरुद्ध आलोक दुबे ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील क्रमांक 18064 प्रस्तुत किया. इसे 27.18.21 के आदेश द्वारा निरस्त किया गया है. उपरोक्त तथ्यों को छिपाते हुए तरुनीर ने माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष जनहित याचिका क्रमांक 76/2022 प्रस्तुत किया था. जिसे माननीय उच्च न्यायालय द्वारा 08.09.2023 के आदेश द्वारा आधारहीन और सही तथ्यों को छुपाकर प्रस्तुत करने के कारण निरस्त कर दिया गया है.
‘छवि धूमिल करने वालों के खिलाफ करेंगे कानूनी कार्रवाई’
पत्रकार वार्ता में वरिष्ठ कांग्रेस नेता और वरिष्ठ अधिवक्ता जेपी श्रीवास्तव ने कहा कि फर्जी तरीके से किसी राजनेता का छवि बिगड़ने के उद्देश्य से कानून का दरवाजा खटखटाना सही बात नहीं है. उन्होंने कहा कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेश के बाद बात बात साफ जाहिर हो गया है कि कौन सच्चा और कौन झूठा है लेकिन कानून का दरवाजा सच्चाई के लिए खटखटाना चाहिए ना कि किसी की छवि बिगड़ने के लिए क्योंकि सत्य को आप ज्यादा दिनों तक छिपा नहीं सकते हैं. वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष सिंह ने पत्रकार वार्ता के दौरान यह भी बताया कि छवि बिगाड़ना वाले कैलाश मिश्रा और आलोक दुबे के विरुद्ध जल्द ही क्रिमिनल और सिविल मामला न्यायालय में दायर किया जाएगा. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति और एक राजनेता की छवि को धूमिल करना एक कानूनी अपराध है लेकिन कुछ लोगों ने ऐसा किया है जिसके कारण यह मामला दर्ज करना अत्यंत आवश्यक है.
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